किसान दिवस

        किसानों का मसीहा और किसान दिवस
दिन- रविवार 23 दिसंबर, 2018 किसान दिवस।
कृषि प्रधान देशों की सूची में सुमार भारत एक ऐसा राष्ट है जिसने विषम परिस्थितियों के बावजूद कृषि क्षेत्र में इतना विकास किया है। यदि भारतवर्ष के अतीत पर नज़र डालें तो हमें निरंतर बंदिशें ही दिखाई देती हैं। इतने वर्षों तक गुलामी की मार झेलने के बाद भी भारत ने कृषि के जरिये खुद को एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बना दिया। भारत अपनी कई विशेषताओं के लिये विश्वभर में जाना जाता है। विभिन्नता में एकता के प्रतीक के रूप में पहचाने जाने वाले भारत में कई वर्ग-विशेष तथा समुदाय आदि निवास करते हैं। कृषि में अपना सहयोग देने वाले कृषक सम्प्रदाय की ही बदौलत भारत में कृषि की स्थिति बेहतर हुई थी। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का बहुत बड़ा योगदान है।
किसान दिवस:- 
भारतीय जनमानस में अन्नदाता की संज्ञा प्राप्त किसानों का यह दिवस प्रत्येक वर्ष 23 दिसंबर को मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत 2001 की अटल बिहारी वाजपेयी जी की केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। चौधरी चरण सिंह ही वे महान व्यक्ति हैं जिनकी जयंती के मौके पर यह दिवस मनाया जाता है। 
आखिर कौन थे चौ० चरण सिंह?
जैसा कि नाम से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आप एक जाट परिवार में जन्मे थे। आपका जन्म 23 दिसंबर, 1902 को गाजियाबाद जिले के नूरपुर गांव में हुआ था। आगरा विश्वविद्यालय से कानूनी पढ़ाई के बाद आपने वकालत भी की थी। आप एक सफल राजनीतिक नेता तो थे ही पर उससे कहीं अधिक आप एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मशहूर थे। ज़मीनी स्तर से जुड़े होने के कारण आपका किसानों से अधिक लगाव रहा। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि अधिक प्रचलित थी। आपने भारत के पांचवे प्रधानमंत्री के रूप में 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक कार्यभार संभाला। चौधरी साहब प्रधानमंत्री से पूर्व दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद भी संभाल चुके थे। चौधरी साहब के किसानों के हित में किये गए कुछ सराहनीय कार्य:-
 1. इन्होंने 1952 में एक विधेयक पेश किया जो किसानों के हित में था इस विधेयक की बदौलत ही देश में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ।
2. चरण सिंह ने 1954 में उत्तर प्रदेश में भूमि संरक्षण कानून लागू किया था।
3. चौधरी चरण सिंह जी द्वारा 1979 में भारत के वित्तमंत्री तथा उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की गई।
निरंतर किसानों के हित संबंधी कार्यों में ही उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। यही वजह रही कि जनमानस का यह नेता आज भी ग्रामीण जीवन में अमर है। अपने जीवनकाल में समाज कल्याण करते हुए तथा एक कुशल राजनीतिक नेता की भूमिका निभाते हुए 29 मई, 1887 को 84 वर्ष की आयु में किसानों का यह मसीहा स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गया।
-पारसमणि

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

लैंगिक समानता

नारी सशक्तिकरण।

माँ