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मलाला यूसुफजई

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              मलाला यूसुफजई पाकिस्तान के ख़ैबर-पख्तूनख्वा प्रान्त के स्वात जिले में जन्मी बहादुर लडक़ी मलाला यूसुफजई का जन्म 12 जुलाई 1997 में हुआ था। आज विश्वभर में यह नाम बहादुरता की श्रेणी में शीर्ष पर विराजमान है। आख़िर कौन है यह बहुचर्चित लड़की और क्यों इसे बहादुर कहा जा रहा है? मलाला यूसुफजई पाकिस्तान की एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। मलाला  जब केवल 11 वर्ष की आयु की थी तब उनके द्वारा पाकिस्तान में महिलाओं के लिए अनिवार्य शिक्षा की मांग की गई थी। मलाला जिस जिले की निवासी हैं वहाँ तालिबान ने कब्जा कर रखा था। उनकी दहसत से वहां की सभी लड़कियों ने स्कूल जाना बंद कर दिया था। इस वक़्त मलाला महज़ आठवीं कक्षा की छात्रा थी। उनका यह संघर्ष यहीं से शुरू हुआ। 2008 में स्वात घाटी पर तालिबान के कब्जे से वहाँ तकरीबन 400 स्कूल बंद हो गए। इस दौरान मलाला के पिता उसे पेशावर ले गए जहां उन्होंने नेशनल प्रेस के सामने अपना एक मशहूर भाषण दिया जिसका शीर्षक था- "हाउ डेयर द तालिबान टेक अवे माय बेसिक राइट तो एजुकेशन?" तब वे केवल 11 वर्ष की थी। 9 अक्टूबर 2012 को जब वह स्क...

महिला आरक्षण

         महिला आरक्षण की प्रासंगिकता मुद्दा आरक्षण का या पहचान कमजोरी की? आज 21वीं सदी जिसे आधुनिक काल की श्रेणी में रखा गया है सम्पूर्ण विश्व व जनमानस विकास की राह में आगे बढ़ता जा रहा है। आज एक श्लोगन अत्यंत ही बहुचर्चित है- "बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ"। यह श्लोगन कितना सार्थक है? आज भारतीय समाज में लैंगिक असमानता को जड़ से खत्म करने के लिए सत्ता पक्ष तथा जनता पक्ष द्वारा आए दिन नए-नए कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। जिस देश में बेटियों को बोझ समझा जाता हो, पैदा होने से पहले मार दिया जाता हो, अपनाने से पूर्व ही पराया कर दिया जाता हो वहां लैंगिक असमानता का अपने पैर पसारना तो स्वाभाविक ही है। लैंगिक असमानता को पूर्णतः समाप्त करने के लिए  उपयुक्त हल के रूप में "आरक्षण" जैसी कुव्यवस्था का सहारा लिया जाता है। परंतु क्या यह वाकई एक उपयोगी व्यवस्था है? शायद नहीं! महिलाएं इतनी भी कमजोर नहीं कि अपने जीवन स्तर को पुरुषों के समान उठाने के लिए उन्हें आरक्षण का सहारा लेने की आवश्यकता पड़े। जहां एक ओर लड़कियों को लड़कों के समान समझा जाता है वहीं दूसरी ओर उन्हें आरक्षण दे...