सावित्री बाई फुले
सावित्री बाई फुले
किसने कहा साहब की भारतीय नारी कमज़ोर है? कमज़ोर तो है, मगर महिला नहीं हमारे समाज की मानसिकता। मानसिकता ही तो है जो समाज में कुरीतियों का कारक और सदाचार के भाव दोनों ही उत्पन्न कर सकती है। न नारी आज कमज़ोर है न 150 वर्ष पूर्व थी, न वह आज मजबूर है न 150 वर्ष पूर्व मजबूर थी, बस अगर वह थी तो सिर्फ चुप। नारी शिक्षा की चमक उत्पन्न करने वाली भी एक नारी ही थी जिसने अपने जीवन को लक्ष्य व उद्देश्य के भावों के साथ जीने का निर्णय लिया था। समाज सुधार करते हुए सामने आई तमाम चुनौतियों को जिसने दरकिनार कर दिया, हाँ वही थी महिलाओं के जीवन को सरल सुगम बनाने की उत्तरदायी "सावित्रीबाई"।
भारतीय समाज के प्रथम कन्या विद्यालय की संस्थापक तथा प्रथम महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ। महिलाओं की स्वतंत्रता तथा अधिकारों की अहमियत को सावित्रीबाई ने 150 वर्ष पूर्व ही भांप लिया था इसलिए ही उन्होंने अपने उद्देश्यमयी जीवन में विधवा विवाह, छुआछूत, महिला मुक्ति तथा दलित महिलाओं को शिक्षित बनाने जैसे लक्ष्यों को पूर्ण किया।
महिलाओं को समाज का कोई भय नहीं होना चाहिए क्यों? क्योंकि समाज ने महिलाओं को दिया ही क्या केवल परेशानियां! उस वक्त महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता की पहल भी खुद एक महिला ने ही की थी। समाज ने तो दुतकार लगाकर अपनी भूमिका निभाई। महिला शिक्षा की राह की ओर अग्रसर सावित्रीबाई फुले पर पत्थर, कीचड़ तथा गोबर तक फैंका गया। किंतु क्या उस स्त्री के कदम डगमगाए?
नहीं, बल्कि और भी ज्यादा हिम्मत के साथ सतह पर जम गए। सावित्रीबाई फुले के बलिदान से ऐसी अनुभूति सी होती है की मानों वो कह रही हों-
"महिलाएं हैं साहब कठपुतली नहीं,
निर्भीक हैं हम बेजान नहीं,
मत समझो बेबस इस कदर,
कहीं आप ही बैठे पछताओ,
हम तो अपने पथ पर अटल हैं,
जरा अपने ज़मीर को समझो।"
Very good
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