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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फेसबुक

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                           # फेसबुक  आज 21वीं सताब्दी के इस आधुनिक युग में एक ओर जहां संपूर्ण विश्व प्रगति और विकास की राह में आगे बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर इस प्रगति को गति देने का कार्य इंटरनेट के जरिए किया जा रहा है। मनुष्य को मनुष्य से तथा सम्पूर्ण विश्व से जोड़ने के लिए आज इंटरनेट पर अनेको सोशल साइट्स मौजूद हैं जिनमें से कुछ लोकप्रिय हैं- फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर, ब्लॉग्स इत्यादि हैं। ये विभिन्न सोशल साइट्स व एप्लिकेशन अपने अपने स्तर पर अपने यूजर्स को आकर्षित करने का कार्य बख़ूबी कर रही हैं। इन सभी सोसिअल साईट्स में फेसबुक एप्लिकेशन सबसे अधिक लोकप्रिय तथा पसंद की जा रही है। इसकी लोकप्रियता का पता इस बात मात्र से लगाया जा सकता है कि इसपर सक्रिय रहने वालों की संख्या प्रति माह 2.07 अरब है। आखिर क्यों ये एप्लिकेशन बाकी सोशल साइट्स से अधिक लोकप्रिय है इसका पता लगाने के लिए हमे निम्नलिखित तथ्यों को जानना होगा जो इसे पसंदीदा बनाने का कारण बने हुए हैं। फेसबुक एप्लिकेशन के माध्यम से सभी यूजर्स अपनी पोस्ट क...

नारी सशक्तिकरण।

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नारी सशक्तिकरण क्या है?           नारी सशक्तिकरण से आशय महिलाओं में उस क्षमता व योग्यता की मौजूदगी से है जिससे वे अपने जीवन से जुड़े सभी नीजि निर्णयों को स्वंय बिना किसी पारिवारिक दबाव के ले सकती हो। भारत में नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता:-      भारत, यह वही देश है जो सम्पूर्ण विश्व में अपनी विभिन्न संस्कृतियों के लिए तथा विभिन्नता में एकता के रूप में चिन्हित किया जाता है। मुख्यतः भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता इस लिए पड़ी क्योंकि प्राचीन भारत में महिलाओं के साथ सती प्रथा, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा आदि प्रताड़ित करने वाली कुरीतियों में बढ़ोतरी होती रही थी। बदलते समय के साथ यह जरूरी हो गया कि इन कुरीतियों को खत्म करके महिला सशक्तिकरण के माध्यम से महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार किया जा सके। लैंगिक असमानता भारत जैसे पुरूष प्रधान देश में एक मुख्य सामाजिक मुद्दा  है, जिसके कारण महिलाएं पुरुषों के प्रभुत्व में पिछड़ती जा रही है। महिलाओं को पुरुषों जे बराबर लाने के लिए नारी सशक्तिकरण में ते...

लैंगिक समानता

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                     लैंगिक समानता लैंगिक समानता क्या है? आखिर क्यों यह किसी भी समाज और राष्ट्र के लिए एक आवश्यक तत्त्व बन गया है? क्या बदलते समाज में यह प्रासंगिक है? लैंगिक समानता का अर्थ यह नहीं की समाज का प्रत्येक व्यक्ति एक लिंग का हो अपितु लैंगिक समानता का सीधा सा अर्थ समाज में महिला तथा पुरुष के समान अधिकार, दायित्व तथा रोजगार के अवसरों के परिप्रेक्ष्य में है। जिस प्रकार तराजू में दोनों तरफ बराबर भार रखने पर वह संतुलित होता है ठीक उसी तरह किसी भी समाज व राष्ट्र में संतुलन बनाने के लिए जरूरी है की वहाँ पुरुषों तथा स्त्रियों के मध्य लैंगिक समानता स्थापित की जानी चाहिए। आज आधुनिकता की जीवन शैली को अपनाने के बावजूद भारतीय समाज लैंगिक समानता के मामले में इतना पिछड़ा हुआ है। सही मायनों में देखा जाए तो लैंगिक समानता का न होना ही समाज मे असंतुलन और अपराध को जन्म देता है।               यह बहुत जरूरी है कि हर क्षेत्र में चाहे वह शिक्षा हो, राजनीति हो, रोजगार हो, अवसर या अधिकार हो हर छेत्र में ...