माँ

माँ... सृष्टि की रचनाकर स्त्री, जिसने हर पल कष्ट सहकर सृष्टि को आकार दिया है, आज वही समाज उस मां के बलिदान को भूल रहा है और अपनी मर्यादाएं लाँघ रहा है। वह स्त्री जो हर घर की शोभा होती है। वह माँ, बेटी, बहन अनेकों रूप में होती है तो कौन है माँ? उसकी अहमियत, उसका बलिदान?